Tuesday, July 21, 2009

भारत का विश्व पर ऋण (SWAMI VIVEKANAND)

सम्पूर्ण विश्व पर हमारी मातृभूमि का महान्‌ ऋण है । एक-एक देश को लें तो भी इस पृथ्वी पर दूसरी कोई जाति नहीं है, जिसका विश्व पर इतना ऋण है । जितना कि इस सहिष्णु एवं सौम्य हिन्दू का ! ‘‘निरीह हिन्दू'' कभी-कभी ये शब्द तिरस्कारस्वरुप प्रयुक्त होते है, किन्तु कभी किसी तिरस्कार-युक्त शब्द प्रयोग में भी कुछ सत्यांश रहना सम्भव हो तो वह इसी शब्द प्रयोग में है । यह ‘‘निरीह हिन्दू '' सदैव ही जगत्पिता की प्रिय संतान है ।

प्राचीन एवं अर्वाचीन कालों में शक्तिशाली एवं महान्‌ जातियों से महान्‌ विचारों का प्रादुर्भाव हुआ है । समय-समय पर आश्चर्यजनक विचार एक जाति से दूसरी के पास पहुंची हैं । राष्ट्रीय जीवन के उमड़ते हुए ज्वरों से अतीत में और वर्तमान काल में महासत्य और शक्ति के बीजों को दूर-दूर तक बिखेरा है । किन्तु मित्रो ! मेरे शब्द पर ध्यान दो । सदैव यह विचार-संक्रमण रणभेरी के घोष के साथ युद्धरत सेनाओं के माध्यम से ही हुआ है । प्रत्येक विचार को पहले रक्त की बाढ़ में डुबना पड़ा । प्रत्येक विचार को लाखों मानवो की रक्त-धारा में तैरना पड़ा । शक्ति के प्रत्येक शब्द के पीछे असंख्य लोगों का हाहाकार, अनाथों की चीत्कार एवं विधवाओं का अजस्र का अश्रुपात सदैव विद्यमान रहा । मुख्यतः इसी मार्ग से अन्य जातियों के विचार संसार में पहुंचे । जब ग्रीस का अस्तिव नहीं था । रोम भविष्य के अन्धकार के गर्भ में छिपा हुआ था, जब आधुनिक योरोपवासियों के पुरखे जंगल में रहते थे और अपने शरीरों को नीले रंगों में रंगा करते थे, उस समय भी भारत में कर्मचेतना का साम्राज्य था । उससे भी पूर्व, जिसका इतिहास के पास कोई लेखा नहीं जिस सुन्दर अतीत के गहन अन्धकार में झांकने का साहस परम्परागत किम्बदन्ती भी नहीं कर पाती, उस सुदूर अतीत से अब तक, भरतवर्ष से न जाने कितनी विचार-तरंगें निकली हैं किन्तु उनका प्रत्येक शब्द अपने आगे शांति और पीछे आशीर्वाद लेकर गया है । संसार की सभी जातियों में केवल हम ही हैं जिन्होंने कभी दूसरों पर सैनिक-विजय प्राप्ति का पथ नहीं अपनाया और इसी कारण हम आशीर्वाद के पात्र हैं ।
एक समय था-जब ग्रीक सेनाओं के सैनिक संचलन के पदाघात के धरती कांपा करती थी । किन्तु पृथ्वी तल पर उसका अस्तित्व मिट गया । अब सुनाने के लिए उसकी एक गाथा भी शेष नहीं । ग्रीकों का वह गौरव सूर्य-सर्वदा के लिए अस्त हो गया । एक समय था जब संसार की प्रत्येक उपभोग्य वस्तु पर रोम का श्येनांकित ध्वज उड़ा करता था । सर्वत्र रोम की प्रभुता का दबदबा था और वह मानवता के सर पर सवार थी पृथ्वी रोम का नाम लेते ही कांप जाती थी परन्तु आज सभी रोम का कैपिटोलिन पर्वत खण्डहारों का ढेर बना हुआ है, जहां सीजर राज्य करते थे वहीं आज मकड़ियां जाला बुनती हैं । इनके अतिरिक्त कई अन्य गौरवशाली जातियां आयीं और चली गयी, कुछ समय उन्होंने बड़ी चमक-दमक के साथ गर्व से छाती फुलाकर अपना प्रभुत्व फैलाया, अपने कलुषित जातीय जीवन से दूसरों को आक्रान्त किया; पर शीर्घ ही पानी के बुलबुलों के समान मिट गयीं । मानव जीवन पर ये जातियां केवल इतनी ही छाप डाल सकीं ।
किन्तु हम आज भी जीवित हैं और यदि आज भी हमारे पुराण-ऋषि-मुनि वापस लौट आये तो उन्हें आश्चर्य न होगा; उन्हें ऐसा नहीं लगेगा कि वे किसी नये देश में गए । वे देखेंगे कि सहस्रों वर्षो के अनुभव एवं चिन्तन से निष्पन्न वही प्राचीन विधान आज भी यहां विद्यवान है; अनन्त शताब्दियों के अनुभव एवं युगों की अभिज्ञता का परिपाक -वह सनातन आचार-विचार आज भी वर्तमान है, और इतना ही नहीं, जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, एक के बाद दूसरे दुर्भाग्य के थपेड़े उन पर आघातों करते जाते हैं । पर उन सब आघातों का एक ही परिणम हुआ है कि वह आचार दृढ़तर और स्थायी होते जाते हैं। किन्तु इन सब विधानों एंव आचारों का केन्द्र कहां है । किस हृदय में रक्त संचलित होकर उन्हे पुष्ट बना रहा है । हमारे राष्ट्रीय जीवन का मूल स्रोत है । इन प्रश्नों के उत्तर में सम्पूर्ण संसार के पर्यटन एवं अनुभव के पश्चात मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूं कि उनका केन्द्र हमारा धर्म है । यह वह भारत वर्ष है जो अनेक शताब्दियों तक शत शत विदेशी आक्रमणों के आक्रमणों के आघातों को झेल चुका है । यह ही वह देश है जो संसार की किसी भी चट्टान से अधिक दृढ़ता से अपने अक्षय पौरुष एवं अमर जीवन शक्ति के साथ खड़ा हुआ है । इसकी जीवन शक्ति भी आत्मा के समान ही अनादि, अनन्त एवं अमर है और हमें ऐसे देश की संतान होने का गौरव प्राप्त है ।

त्याग की देवी रुद्रमाम्बा

मित्रो, वह युगाब्द 4425 ( सन्‌ 1323 ) की जन्माष्टमी का दिन था। कर्णाटक राज्य की राजधानी द्वारसमुद्र में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जा रहा था। कर्णाटक नरेश बल्लाल देव यह उत्सव दूसरी ही तरह मना रहे थे। उस समय उत्तरी भारत आक्रमणकारी सुल्तानों से पदाक्रान्त हो रहा था। कुछ वर्षों पहले अलाउद्दीन खिलजी का एक सरदार मलिक काफ़ूर दक्षिण में भयंकर तबाही कर गया था। गयासुद्दीन तुगलक के सिपहसालार जूना खाँ ने उस समय भी वारंगल को घेर रखा था। देश में आए उस भीषण संकट के समय भी बल्लाल देव को चक्रवर्ती बनने की धुन सवार थी। पाँच राज्यों को वह अब तक जीत चुका था मदुरा और वारंगल उसके अगले निशाने थे। सात राजमुकुटों को अपने पैरों में झुकाकर चक्रवर्ती कहलाने की महत्त्वकांक्षा उसके मन में थी। जन्माष्टमी से पहले उसके सेनापति संगमराय मदुरा के पाण्ड्य संघ के प्रमुख सोमैया नायक को बंदी बना लाए थे। उस दिन कर्णाटक के भरे राजदरबार में छठें राजा पर विजय का उत्सव मनाया जा रहा था।

मलिक काफ़ूर से डट कर लोहा लेने वाले तथा आखिर तक विदेशियों से संघर्ष का संकल्प किए वीरवर सोमैया नायक को महिलाओं के वस्त्रा पहनाकर तथा रस्सियों से बाँधकर दरबार में लाया गया था। केवल उनके हाथ खुले थे। नायक को सामने देखकर बल्ला देव के मंत्री ने कहा -
सोमैया नायक अब तुम कर्णाटक के अनुगत हो, अतः पहले हमारे कुलदेवता को और फ़िर होयसलराज को प्रणाम करो, ताकि तुम्हें बधंन मुक्त किया जा सके। वीरश्रेष्ठ सोमैया नायक कुछ उत्तर देते उसके पहले ही उन्हें बन्दी बनाने वाले संगमराय ने होयसलराज बल्लाव देव से निवेदन किया - महाराज यह क्यों ? आपने मुझे वचन दिया था कि नायक सोमैया से वीरों जैसा व्यवहार करेंगे, पर आप तो इनका अपमान कर रहे हैं।
हम वचन पर दृढ़ हैं, संगमराय । लेकिन पराजित को अपनी मर्यादा का भी तो ध्यान होना चाहिए। हमें प्रणाम करना कोई अपमान की बात तो नहीं। बल्लाल देव ने कहा। तभी सभा-भवन में एक जोरदार अट्टहास गूंजा। यह तीखी हँसी सोमैया नायक की थी। आँखें बंद किए खड़े नायक ने जैसे होयसलराज को चुनौती देते हुए कहा, कौन विजयी और कौन पराजित है, बल्लाव देव, पराजित तो यह ध्रती हो रही है। तुरुष्कों के एक के बाद एक आक्रमण हमारी इस मातृभूमि पर हो रहे हैं और अभी तक हम व्यक्तिगत स्वार्थों में ही डूबे हुए हैं, घोर आश्चर्य है।फ़िर संगमराय को संबोधित करते हुए सोमैया नायक ने कहा - फ्वीरवर संगम, इस पूरी सभा में दर्शनीय व्यक्ति एक तू ही है। जा, मेरी चिन्ता मत कर, मेरे भले-बुरे का दायित्व महाकाल पर है, तुझ पर नहीं।संगमराय ने यह सुना तो होयसलराज से कहा - महाराज सोमैया नायक के अपमान का दुष्परिणाम कर्णाटक को भुगतना होगा इसके बाद वे सभा भवन से चल दिए। बल्लाल देव को सोमैया नायक तथा संगमराय की बातों से क्रोध् आ रहा था। रोष में आकर उन्होंने संगमराय को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के पावन अवसर पर कुछ अनहोनी होने लगी थी। जैसे ही कुछ सैनिक संगमराय को बन्दी बनाने के लिए आगे बढ़े, सभा-भवन में मजबूत कदकाठी वाला एक तेजस्वी नौजवान प्रकट हुआ। नागिन की तरह लपलपाती एक विकराल तलवार भी उसके हाथ में थी। पूरी राजसभा संगमराय के पुत्र उस तेजस्वी नवयुवक हरिहर को देखकर स्तब्ध् रह गई। सभा में सिंह-गर्जना करते हुए उसने कहा - सावधन होयसलराज। कुछ करने से पहले उसके परिणामों पर भी विचार कर लीजिए। तुरुष्कों ने हमारे देश के उत्तरी भाग को पद-दलित कर दिया है। दक्षिण पर भी उनके आक्रमण फ़िर से प्रारंभ हो गए हैं। हम यूं ही आपस में लड़ते रहे तो पूरा देश पराधीन हो जाएगा। हमारी संस्कृति को यदि जीवित रखना है तो हमें वीरों का सम्मान करना सीखना होगा।
हरिहर का चुनौतीपूर्ण स्वर सुनकर बल्लाल देव और क्रोधित हो गए। क्रोध् में होंठ चबाते हुए उन्होंने कहा, कौन हो तुम ? कैसे इस सभा-भवन में आ गए ? क्या तुम्हें राज-सभा के व्यवहार का तनिक भी ज्ञान नहीं है ? मैं संगमराय का पुत्र हरिहर हूँ, महाराज। जाति से कुरुब (गड़रिया) हूँ इसलिए राजसभाओं के नियमों को क्या जानूँ। पर आप यादव वंश के सूर्य हैं, बल्लाव देव, इसलिए विनती कर रहा हूँ कि सोमैया नायक को वीरोचित सम्मान के साथ मुक्त कर दें और अपनी तलवार के जौहर तुरुष्कों के विरुद्ध दिखाएं, नौजवान ने उत्तर दिया। तनिक-सा रुक कर हरिहर ने फ़िर कहा - आपको वारंगल ही चाहिए था चक्रवर्ती बनने के लिए, कृष्णा जी नायक आपके लिए वारंगल ले आए हैं। यह कहकर हरिहर ने अपने पीछे खड़े कृष्णा जी को संकेत किया। कृष्णा जी के एक हाथ में तलवार और दूसरे में एक गठरी थी। सभाभवन में आगे आकर उन्होंने अपने दोनों हाथ ऊपर किए तो उनकी तलवार से मानों बिजली-सी कौंधने लगी।
होयसलराज मैं आपके लिए वारंगल ले आया हूँ। जानते हैं इस गठरी में क्या है ? देखिए और जरा सावधनी से देखिए, यह कहते हुए उन्होंने तलवार से कपड़ा हटाया तो कृष्णाजी के हाथ में एक कटा हुआ मस्तक दिखाई दिया। सारी राजसभा एकदम से अचंभित और भयग्रस्त हो गई। ऐसी शांति छा गई कि एक सूई भी गिरे तो उसकी आवाज सुनाई दे। कृष्णा जी ने फ़िर कहना शुरु किया - होयसलराज ! यह मस्तक वारंगल के महाराज प्रतापरुद्र का है। तुरुष्कों ने वारंगल को मिट्टी में मिला दिया है। जानते हैं कि यह मस्तक किसने काटा है ? वारंगल की राजमाता रुद्रमाम्बा ने। उनके बूढ़े हाथ अपने पुत्र का मस्तक काटने में जरा भी नहीं काँपे। वारंगल के ध्वस्त होने के पहले राजमाता ने मुझे बुलाया। राजभवन में महाराज प्रतापरुद्र बैठे थे। पास में राजमाता हाथ में तलवार लिए खड़ी थीं। बल्लाव देव! जानते हैं राजमाता ने क्या कहा ?
राजसभा में उस समय उत्तर देने की स्थिति में तो कोई था ही नहीं। सभी पत्थर की मूर्ति बने कृष्णाजी नायक की अद्भुत गाथा को सुन रहे थे। कृष्णा जी ने कहना जारी रखा। राजमाता रुद्रमाम्ब ने मुझसे कहा - श्रीकृष्ण जी, तुरुष्कों से लड़ते हुए हमारे सभी सैनिक मारे गए, कभी भी वारंगल का पतन हो सकता है, जानता है मैंने तुझे क्यों बचा रखा है, इसलिए कि तू अब वारंगल से निकल सके। जा बेटा तूपफान की गति से जाकर होयसलराज को मेरा संदेश दे देना यह कहकर राजमाता ने महाराज प्रतापरुद्र की ओर देखा। महाराज ने हाथ जोड़कर सिर झुका दिया। तब राजमाता ने तलवार के एक वार से महाराज का मस्तक काट लिया और मुझे देते हुए कहा - यादव कुल बसंत बल्लाल को यह मस्तक देना और कहना कि भारत माता के ऋण को उतारने का समय आ गया है, माताएं जिसके लिए पुत्रा को जन्म देती हैं वह उद्देश्य पूरा करने का समय भी अब आ गया है। उनसे कहना कि प्रतापरुद्र का मस्तक प्राप्त कर चक्रवर्ती बनने की इच्छा तो उनकी पूरी हो गई पर विदेशी तुरुष्कों के विरुद्ध एकजुट होने में अब देर न करें। अतः होयसलराज ... कृष्णाजी ने अपना संदेश आगे बढ़ाते हुए कहा, .....यह राजमाता का संदेश मैं आपके लिए लाया हूँ। अब भी आप इस संदेश को नहीं समझेंगे तो दुनिया की कोई शक्ति आपको कुछ नहीं समझा सकती।
होयसलराज वीर बल्लाल ने यह संदेश समझ लिया। उस समय के श्रेष्ठ तपस्वी कालमुख विद्यारण्य महाराज के प्रयत्नों से तुरुष्कों की आंधी को रोकने का एक महान्‌ अभियान दक्षिण में चल रहा था। संगमराय, उनका पुत्रा हरिहर, सोमैया नायक, महाराज प्रतापरुद्र, कृष्णाजी नायक जैसे सेनानी पूरे दक्षिणपथ को संगठित करने में लगे हुए थे। राजमाता रुद्रमाम्बा का विलक्षण संदेश मिलने के बाद बल्लाल देव भी इस अभियान में सम्मिलित हो गए। इसी के परिणामस्वरूप विजयधर्म और विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हुई। राय हरिहर इसके पहले महामण्डलेश्वर बने।

Saturday, July 18, 2009

TRUTH ABOUT NATIONAL LANGUAGE(PLEASE LEARN HINDI)

रुस, चीन, जापान, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी आदि सब देशो में उच्च शिक्षा भी अपनी मातृभाषा में दी जाती है। और अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण कर इन देशो के नागरिक अपने देश को शक्तिशाली बना रहे है नि नये नये अविष्कार कर रहे है। लेकिन दुनियां का ज्ञान-विज्ञान, गणित, योग, आध्यात्म देकर जगदगुरु कहलाने वाले देश को नागरिक विदेषी भाषा पढ़ कर कोई अविष्कार करना तो दूर की बात अपनी संस्कृति सभ्यता का ही नाश करने में जुटे हुए है। जब दुनिया भर के देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा देकर अपने देश को शक्तिशाली बना हरे है। तो भारत में ऐसा क्यों नही हो रहा है। पहचानिये उन लोगों को जो आजादी के बाद से ही खास कर कांग्रेस को आपको गलतराह पर ले जा रहे है। देश के युवकों को उनकी मातृभाषा में उच्च विज्ञान चिकित्सा तकनीकि …………………पूरा लेख पढ़ने के लिये देखे साइट http://www.hindusthangaurav.com/doyouhindu.aspयदि आप मानते हैं कि इस साइट का प्रचार देश हित मे आवश्यक है तो इस संदेश को अग्रेषित करें

Monday, July 13, 2009

COW,NOT AN ANIMAL

COW IS NOT JUST AN ANIMAL..........SHE IS THE MOTHER OF INDIANS...-SWAMI DAYANAND SARASWATI

BUT TODAY WE ARE TREATING COW'S WORST THAN ANIMAL ..........WE ARE KEPT ON SAYING GAU MATA BUT NEVER GIVE FOOD TO COW'S.................... INDIAN COW IS THE ONLY ANIMAL WHICH BALANCES ECO-SYSTEM ...............AND THIS WAS PROVED IN NATIONAL ANIMAL LAB,AMERICA.......WE USED TO GIVE FOOD IN PLASTIC BAGS,WHICH IS A POISON FOR COW'S............COW DUNG AND URINE IS THE ONLY EFFECTIVE MEDICINE FOR CANCER.......ITS MILK,MILK FAT IS RICH IN BETA CAROTENE......WHICH IS HEALTHY FOR HEART..........BUT NOW A DAYS,SOME BASTARDS CUT THEM FOR THEIR MEAT AND EXPORT IT IN VARIOUS COUNTRIES............ESPECIALLY BANGLADESHI.............AND EVERYTIME WE DOES NOT REACT......IF SOMEONE CUTS DOWN OUR MOTHER ........WHAT WILL BE UR REACTION.......SO BE AWARE AND HELP US IN VISHVA MANGAL GO GRAM YATRA.......WHICH IS AN MOVEMENT DRIVEN TO PROTECT GAUMATA AND LOG ONTO http://eng.gougram.org/ FOR MORE INFO.

BE INDIAN BUY INDIAN,TRUTH OF MNC'S

ATTENTION INDIANS !
NOW MULTINATIONAL COMPANIES ATTACKS INDIAN ECONOMY ....................
THEY SELL THERE PRODUCTS TO INDIAN PEOPLE BY SAYING THAT THEIR PRODUCTS AND COMPANY IS INDIAN..........LIKE
HINDUSTAN UNILEVER LIMITED(EUROPEON ORGANISATION)ITC(EUROPEON ORGANISATION)COLGATE-PALMOLIVE (U.S ORGANISATION)GILLETE (U.S ORGANISATION)COCA COLA (U.S ORGANISATION)PEPSI CO. (U.S ORGANISATION)
THEY MAKE FOOL OF INDIAN CONSUMERS BY THEIR ADVERTISEMENT...........
STOP USING PRODUCTS LIKE..........LUX SOAP,COCA COLA,PEPSI,KURKURE,GILLETE RAZOR,FAIR AND LOVELY, COLGATE,PEPSODENT,HARPIC,SURF,ARIEL,TIDE,LG PRODUCTS,SAMSUNG PRODUCTS
THERE ARE ONLY SOME PRODUCTS LIST
YOU CAN CHECK THIS COMPANY NAME ON THE BACK OF PRODUCTS.........
AND STOP USING THIS........
THEY TAKE BILLIONS OF RUPEES OF INDIA TO THEIR COUNTRY AND MAKE OUR ECONOMY WEAK....... IF WE USE ONLY INDIAN PRODUCTS THEN THIS MARKET RECESSION WILL GO IN FEW DAYS.
MANY INDIAN PEOPLE GET JOB.............THINK FWD IT TO MAXIMUM PEOPLE THROUGH EMAIL.

FOR FULL INDIAN PRODUCTS LIST LOG ONTO:-
http://www.esnips.com/doc/80ac15d5-b9c7-43cc-be62-0eba64552ed9/Product-List-of-Indian--Multinational-Companies

TRUTH OF TODAY'S MEDIA

ATTENTION INDIANS!
NOW A DAYS,OUR INDIAN MEDIA IS BOUGHT BY COMMUNIST PEOPLE,ANTI SOCIAL ELEMENTS AND CORRUPT MINISTERS...........................THEY SHOWED AND PRINT MOSTLY THOSE MATTERS WHICH THESE PEOPLE WANTS............AS WE KNOW NDTV NEWS CHANNEL IS OWNED BY PRANAB ROY,BROTHER IN LAW OF VRINDA KARAT (CPI)................THESE TYPE OFCHANNEL IS ALWAYS AGAINST NATIONAL ORGANISATIONS AND ALSO HURTS OUR RELIGIOUS FEELINGS
WE WANT TO STOP THESE TYPE OF NEWS BUT GENERALLY WE DONT REACT ON THIS TYPE OF NEWS.......THIS WAY WE ENCOURAGE NEWS CHANNEL AS WELL AS CORRUPT MINISTERS,INSTEAD OF STOPPING THEM............SO REACT AND STOP.
HOW CAN WE STOP NEWS CHANNEL-:
1)LETTER TO THE EDITOR -THIS IS THE MOST EFFECTIVE WAY TO STOP THEM.............SEND YOUR VIEWS TO THE EDITOR OF NEWSPAPER ON POSTCARD ONLY.......ON THE MENTIONED ADDRESS IN ANY NEWSPAPER.
2)POST YOUR COMMENT OR BY EMAIL- SENDING VIEWS ON MENTIONED EMAIL ID AND POST UR COMMENTS ON E-PAPER.
3)BECAME FREINDS OF JOURNALIST ETC.

LOVING JIHAD!

ATTENTION HINDUS!
NOW NEW TYPE OF JIHAD IS ORGANISED BY MUSLIM TERRORIST CALLED "LOVING JIHAD"
LOVING JIHAD MEANS TO CONVERT HINDU GIRLS INTO MUSLIM BY MUSLIM BOYS AND AFTER MARRYING THEM THEY SELL THEM IN RED LIGHT AREAS.
These Muslim boys Play d Game of 'LOVE' with Hindu Gls that ultimately may take them even to ruin their lives.
(Justice Rakesh Sharma of Luknow Branch of Allahabad High Court asked UP Govt. in May 2006 to enquireis as 2 why Hindu Gls were converting to Islam in Large No.)
These jihadis appear as hindu, they change their name, like Razzaq to Ram or Rahul, wearing Hindu Symbols like Kalawa & Teeka and target hindu girls only.
THEIR MOTIVE:- DEMOLITION OF HINDU POPULATION
SO AWARE OF IT!
PLEASE AWARE HINDU GIRLS IN YOUR FAMILY, RELATIVES AND FREIND CIRCLE......
PLEASE STOP THIS BEFORE ITS TOO LATE...!!
(Plz Forward....)
JAGO HINDU JAGO..!!!
Vande Matram!